रोषित जीवन रोषित मन
अज्ञानी मानव अज्ञानी जन
मानवता की ख़ाक छानता
मेरा तन मेरा मन
माना तू है भाई को भूला
माना तू है बाप को भूला
पर इस नंगे बाज़ार में
तू खुद को ही बेच भूला
दो पैसे के लालच लोभ ने
तुझे ये क्या है बना दिया
पेट भरके जेब भरके
घर का तमाशा बना दिया
दुनिया तो दुनिया
पर भारत
तेरा मानव कहाँ गया
धर्म गुरु का स्थान छोड़ तू
आज कोठे में आ गिरा
क्यूँ नहीं तुने ग्रहण किया
तथागत ने जो ज्ञान दिया
उस महा मानव के वचन
तू क्षण में भुला दिया
माना गोरों ने तुझे बहुत सताया
पर अपनी अज्ञानता के घूँट पीकर
ना उनका ज्ञान ले पाया
ना अपना याद रख पाया
तू अभी भी ही सोचता
तेरे पास बचा ही क्या है
पर क्यूँ तू नहीं ये सोचता
ज्ञान चुराया नहीं जा सकता
तेरा ज्ञान अभी भी तेरे पास है भारत
पहचान ले अपने ज्ञान को
वापस लादे सोने की चिडिया
धरती मान के आँगन को
सुन भारत
वो सोना नहीं था चमकता धातु
नहीं वो थे हीरे जवाहरात
वो सोना था तेरा ज्ञान
जो अभी भी पड़ा है तेरे अन्दर
पर वो सोया है
और तुझे उससे जगाना है
उसे जगाके तुझे वो
स्वर्ण युग लाना है
तेरे पूर्वज ने जो खोजा था
योग और ध्यान का रास्ता
धरती माँ के वरदान ढूँढ कर
उन्हें वेदों में बाँध दिया
भारत वो ज्ञान था अजीब निराला
बाकी कोई नहीं था वो खोज पाया
पर दूसरों को बांटना तो दूर
तू खुद ही वो ना रख पाया
Sunday, April 12, 2009
Posted by Anupam at 10:31 AM
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